Saurabh Patel

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लेखनी प्रतियोगिता -17-Jun-2022 कलमकार


अधूरे रह गए जिनके मुहब्बत के सफ़र
अक्सर उन्ही के शेर पर महफ़िल कहती है मुकर्रर

सोचता था मुहब्बत में कुछ नही होता खुशियों से बढ़कर
और फिर उसका बिछड़ना अपनी खुशी का बहाना देकर

मेरा चैन सुकून सब कुछ खा गया ये भूखा दफ्तर
फिर जो बचता है उससे चला लेता हूं मैं अपना घर 

जगमगाते है खूबसूरत जिस्मों से हुस्न के बाज़ार 
और तुम पूछते हो तुम्हे नींद क्यूं नही आती शहर जाकर

आज कल कुछ इस कदर नशे में रहता हूं रात भर
दूर से ही गुजर जाता हूं मैखाने को देखकर

दस्तक अब दे चुका है मजहबी सियासत का दौर
इसलिए पुराना एक दोस्त आता नहीं आज कल मेरे घर की और

"सौरभ"खामोश हो गया है कलम को अपनी जुबां देकर
अब इसे जानना हो तो गौर फरमाना इसकी गजलों पर।

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16 Comments

Pallavi

18-Jun-2022 09:19 PM

Nice post 😊

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Saurabh Patel

18-Jun-2022 09:24 PM

Thanks

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Seema Priyadarshini sahay

18-Jun-2022 05:47 PM

बेहतरीन रचना

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Saurabh Patel

18-Jun-2022 05:54 PM

जी बहुत शुक्रिया आपका

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Punam verma

18-Jun-2022 08:28 AM

Nice

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Saurabh Patel

18-Jun-2022 12:04 PM

Thank you

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